Monday 13 February 2012

जीवन की राह प्रभु की ओर

लेख सार : सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर ले जाने वाली राह के साथ माया के मार्ग की तुलना में केंद्रित लेख है  |
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बड़े शहरो को जोड़ने वाली हाईवे में दो सड़के होती है | एक आने की और एक जाने की | आमने सामने की दिशा से आने जाने वाले वाहन अपने मार्ग पर चलते हैं | बीच में हर १५ - २० किलोमीटर पर हाईवे की दोनों सड़को के बीच एक कट आता है जहाँ से आप अपने वाहन को मोड़कर दिशा बदल सकते हैं |

ऐसे ही मानव जीवन में भी दो दिशाये हैं | एक माया की दिशा और दूसरी प्रभु की दिशा | दोनों दिशाये एक दूसरे से विपरीत है ( जैसे हाईवे पर आने जाने वाली दिशाये एक दूसरे के विपरीत होती है, यानी एक दिशा से वाहन आते हैं और उससे उलटी दिशा में वाहन जाते हैं | )

माया की दिशा चकाचौंध वाली है, जगमगाती है जैसे बड़े शहर आने पर हाईवे रौशनी से जगमगा उठती है | माया की दिशा सभी के लिए बड़ी सुलभ और माया की राह सबके लिए बड़ी आसान और आरामदायक है | आकर्षित करने हेतु तीनों गुण - जगमगाहट, सुलभता और आरामदायक - हमें माया के मार्ग में फसाने हेतु मौजूद हैं | पर इस माया के मार्ग पर चलते रहने से मार्ग की समाप्ति पर हम जिस मुकाम पर पहुचाते हैं वह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण, भयानक और कष्टदायक होता है |

प्रभु के मार्ग में आकर्षित करने हेतु कोई चकाचौंध नहीं है और मार्ग भी सुलभ नहीं, कठिन है | पर मार्ग की समाप्ति पर भगवत सानिध्य, भगवत प्रेम और परमानन्द ( आनंद की परम पराकाष्ठा ) है |


माया के मार्ग में सुख मिल सकता है पर इस मार्ग में आनंद है ही नहीं, पर प्रभु के मार्ग से पहुचने पर आनंद और परमानन्द के अतिरिक्त वहाँ कुछ भी नहीं |

हर मनुष्य के जीवनकाल में दो-तीन बार मार्ग बदलने का मौका जरुर आता है, ठीक वैसे ही जैसे हाईवे पर चल रहे वाहन को दिशा बदलने हेतु दोनों सड़को के बीच कट आता है | यह मार्ग बदलने के मौको को प्रस्तुत करने हेतु जीवन में कोई ऐसा वाक्या / ऐसी घटना घटती है जैसे कोई व्यक्तिगत हानी, शारीरिक कष्ट, व्यापारिक नुकसान इत्यादि इत्यादि जिससे की मायारूपी जीवन में लिप्त उस मनुष्य का मायारूपी जीवन से क्षणभर की लिए मोहभंग होता है और वह प्रभु कृपा से प्रभु की तरफ आकर्षित होता है | कभी अपनों से वियोग, कभी अपनों द्वारा अपमान इत्यादि कई परिस्थितियां प्रभु प्रेरणा से हमारे जीवन में उपस्थित होती हैं और हमारा माया से मोहभंग कराती हैं | पर यह मोहभंग क्षणभंगुर होता है |

पर प्रभु ने मनुष्य को बुद्धि दी है, इस कारण मनुष्य से अपेक्षा होती है कि ऐसे मौको को हाईवे के सड़क कट की तरह समझे और अपनी जीवनरूपी गाड़ी को घुमाकर " माया के मार्ग " से " प्रभु मार्ग " की तरफ मोड़ दे | जीवन में ऐसे मौको को कभी चुकना नहीं चहिये |

जैसे हाईवे पर चल रही एक गाड़ी जिसमे इंधन बहुत कम बचा हो और इंधन भरने का पम्प उलटी दिशा में नजर आ रहा है, ऐसे में अगर गाड़ीवाला हाईवे के सड़क कट पर गाड़ी मोड़ना भूल जाये तो अगला सड़क कट उसे नसीब नहीं होगा (क्योंकि वह १५ - २० किलोमीटर आगे है, तब तक गाड़ी का तेल खत्म होकर गाड़ी रुक जाएगी ) | ऐसे ही एक मानव जिसकी जीवनलीला कब खत्म हो जाये इसका उसे पता नहीं, अगर वह " प्रभु मार्ग " में मुड़ने का मौका चुक गया तो अगला मौका उसे जीवन में कब नसीब होगा यह पता नहीं और तब तक उसके जीवन की गाड़ी रुक जाएगी (यानी शरीर शांत हो जायेगा ) | राजा परीक्षित शाप मिलाने के प्रश्चात ७ दिवस के लिए निश्चिंत थे क्योंकि उनकी मृत्यु ७ दिन बाद निश्चित थी - हमारी मृत्यु भी निश्चित है, पर कब निश्चित है, इसका हमें भान नहीं इसलिए हम अगले पल के लिए भी निश्चिंत नहीं हैं |

इसलिए जैसे प्रथम उपलब्ध कट पर ही गाड़ी मोड़ लेना समझदारी है, वैसे ही पहले उपलब्ध मौके पर " माया मार्ग " त्यागकर " प्रभु मार्ग " की तरफ मुड़ना सबसे बड़ी समझदारी है | जीवन की दिशा बदलने की यह मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी समझदारी भी प्रभुकृपा के कारण ही मनानी चाहिये ( यानी मेरे ऊपर मेरे प्रभु ने कृपादृष्टी डाली और मार्ग बदलने का अवसर मेरे जीवन में उपस्थित हुआ ) | मेरे प्रभु की पहली कृपा मनानी चाहिये कि - प्रभुमार्ग पर चलने का अवसर मेरे जीवन में आया | मेरे प्रभु की दूसरी कृपा मनानी चाहिये कि - उस अवसर को मेरी बुद्धि ने प्रभु प्रेरणा से खोया / गवाया नहीं |


मायारूपी भवर में फसे मनुष्य को प्रभु से सदा सच्ची प्रार्थना करते रहना चाहिये कि यह दोनों प्रभुकृपा उसके जीवन में भी हो |

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लेखक परिचय:   परम सांत्वना केवल प्रभु के प्रति भक्ति से ही आती है | संदीप आर करवा पेननाम चंद्रशेखर के तहत प्रभु के प्रति समर्पण पर लेख लिखते हैं |  लेखक की वेबसाइट  http://www.devotionalthoughts.in में दर्ज विचार आपको सर्वशक्तिमान ईश्वर के करीब ले जाएगा |

प्रभु नामरूपी धन

लेख सार  : संसारी धन बनाम प्रभु नामरूपी धन के बीच लेख में तुलना की गई  है  | लेख संक्षेप में यह कहने की कोशिश करता है कि आजीविका आवश्यकता से परे, संसारी धन का थोड़ा मूल्य या उपयोग है  | लेकिन हम आने वाली पीढ़ियों के लिए संसारी धन जमा करते हुए प्रभु नामरूपी धन अर्जित करना भूल जाते हैं , इस प्रकार हम अपना मानव जीवन बर्बाद कर देते हैं  | हम संसारी धन की कमजोर कमाई करते हैं  और प्रभु नामरूपी धन के रूप में मणि कमाने का महान अवसर खो देते हैं |
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सबसे " उत्तम धन " की व्याख्या क्या है ? दो मूल सिद्धांत के कारण ही धन की उत्तमता की व्याख्या संभव है |


पहला सिद्धांत - वही उत्तम धन जो सब जगह चले ( जैसे यूरो प्राय: सभी यूरोपियन देशो में चलता है | इसलिए यूरोप के किसी एक देश की मुद्रा के बजाय यूरो उत्तम क्योंकि वह उस देश के अलावा अन्य यूरोपियन देशो में भी चलता है ) |

दूसरा सिद्धांत - वही उत्तम धन जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके |

संसारी धन की ताकत को इन दोनों सिद्धांतो की कसौटी पर तोला जाये तो वह बहुत कमजोर साबित होता है |

पहले सिद्धांत ( उत्तम धन वही जो सब जगह चले) पर तोले तो पायेंगे की अगर हमने संसारी धन की विश्वमुद्रा ( पुरे विश्व में चलने वाली एक मुद्रा ) भी बना दी तो भी वह अन्य ग्रहों में नहीं चलेगा | अन्य ग्रहों की बात छोड़ दे , वह तो पृथ्वी में भी हर जगह नहीं चलेगी | उद्धरण स्वरुप अगर हम सागर में डूब रहे है और हमारी जेब में खूब सारी विश्वमुद्रा भरी है और एक मगरमच्छ हमें निगलने हेतु सामने है तो क्या हम सागर के मध्य में मगरमच्छ को विश्वमुद्रा देकर यह कह सकते हैं की हमें निगलो मत और अपनी पीठ पर बैठाकर हमें सागर के किनारे छोड़ दो | हमारा संसारी धन पृथ्वीलोक में मगरमच्छ से हमारी रक्षा तक नहीं कर सकता | संसारी धन की ताकत नहीं की वह अगले जन्म में हमारे काम आ सके | क्या इस जन्म का संसारी धन हमारे अगले जन्म में हमें मानव देह और एक सुसंपन्न परिवार में जन्म दिला सकता है? कदापि नहीं |

दूसरा सिद्धांत ( उत्तम धन वही जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके) पर तोले तो पायेंगे की हमारे संसारी धन से चाहे वह रूपया हो , सोना हो , जमीन जायदाद हो या कोई भी अन्य सम्पति हो , उससे हम जीवन की एक श्वास - जीवन का एक पल तक नहीं खरीद सकते | जीवन की एक श्वास भी भूल जाइए, क्या हम संसारी धन से स्वास्थ की गारंटी खरीद सकते हैं की हमें एक भी रोग, बीमारी, शारीरिक प्रतिकूलता नहीं हो | क्या हम संसारी धन से "आनंद" और उससे भी आगे "परमानन्द" की अनुभूति मात्र भी कर सकते हैं | हम मात्र सांसारिक सुख के तुच्छ्य साधन खरीद सकते हैं | " परमानन्द " एक शिखर का नाम है जबकि सांसारिक सुख उस शिखर के सबसे निचले पायेदान का नाम है |

सांसारिक धन की चर्चा करके हमने उसकी गुणवत्ता को देखा | अब चर्चा करते हैं प्रभु नामरूपी उस श्रेष्ठत्तम परमधन की | सांसारिक धन के सन्दर्भ में चर्चा किये दोनों सिद्धांत इस परमधन में लबालब डुबे नजर आयेंगे |

पहले सिद्धांत ( उत्तम धन वही जो सब जगह चले) - यह परमधन पृथ्वी के हर कोने में, पृथ्वी के हर कण में, सभी ग्रहों, सभी लोक (इहलोक , परलोक ) में स्थाई रूप से चलता है | इस परमधन की कमाई इस जन्म, अगले जन्म, जन्मोजन्म तक काम आती है | {अर्जुन जी ने मेरे प्रभु से पुछा कि अगर किसी ने पुरे जीवन आपकी भक्ति नहीं की और जीवन के अंतिम चरण में ही आपका स्मरण किया और फिर उसकी निर्धारित मृत्यु ने उसे आ दबोचा तो क्या उसका यह शुभकर्म व्यर्थ चला जाता है | उत्तर में मेरे प्रभु ने स्वयं श्रीमदगीताजी में अपने श्रीवचन में कहा कि अर्जुन मेरा स्मरण, मेरी भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती ( चाहे जीवन के अंतिम अवस्था में भी की गई हो ) क्योंकि मैं (प्रभु) उसे संजोये रखता हूँ और अगले जन्म में उस जीव को वह प्रदान करता हूँ | }

दूसरा सिद्धांत ( उत्तम धन वही जिससे सब कुछ उपलब्ध हो सके) -ऐसा कुछ भी नहीं जो यह परमधन उपलब्ध नहीं करा सकता | यह डूबते हुये हमारी सागर में, मगरमच्छ के सामने भी रक्षा करता है | गजेन्द्र मोक्ष की श्रीकथा इसका जीवंत उद्धाहरण है | क्योंकि जिन परमपिता परमेश्वर का यह नामधन है, संसार की, भूमंडल की, भूमंडल के बाहर की भी हर चीज उन्ही परमपिता परमेश्वर के आधीन है | इसलिय परमपिता का नामरूपी महाधन हर युग में, हर चीज पर बेखटक चलता ही नहीं दौडता है | उद्धाहरण स्वरुप आप नामरत्न के पुण्यो से अपने पूर्व जन्मों के कठिन से कठिन पापकर्म भी धो सकते हैं | आप नामरत्न के बल पर अपनी भाग्यरेखा भी बदल सकते हैं |

जरा सोचे ऐसा क्या है जो प्रभु नामरूपी धन से अर्जित नहीं किया जा सकता और जरा सोचे की ऐसी कौन सी जगह है जहा पर यह प्रभु नामरूपी नहीं चलता | यह महाधन यमलोक, नर्क में भी चलता है क्योंकि इसी नामरूपी धन के बल पर ही वहाँ से हमारी मुक्ति संभव होती है |

अब अंत में इतना जरुर सोचे की हमारे धन कमाने की प्रवीणता और प्रधानता कही " सांसारिक धन " कमाने तक तो सीमित होकर नहीं रह गई है | अगर ऐसा है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य मानव जन्म लेकर और कुछ नहीं | अगर ऐसा है तो हमारे धन कमाने की प्रवीणता और प्रधानता को तत्काल प्रभु नामरूपी परमधन कमाने की तरफ अविलम्ब मोड़ना चाहिये नहीं तो यह मानव जीवन बेकार चला जायेगा | ठीक वैसे ही जैसे इंजिनियर बनकर एक व्यक्ति बेलदारी करे या सर्जन बनकर एक व्यक्ति अस्पताल में वार्डबॉय का काम करे |

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लेखक परिचय:   परम सांत्वना केवल प्रभु के प्रति भक्ति से ही आती है | संदीप आर करवा पेननाम चंद्रशेखर के तहत प्रभु के प्रति समर्पण पर लेख लिखते हैं |  लेखक की वेबसाइट   http://www.devotionalthoughts.in में दर्ज विचार आपको सर्वशक्तिमान ईश्वर के करीब ले जाएगा |